खुद से लड़-लड़ के गुजारी जिंदगी !
ना पूछ के कैसे संवारी जिंदगी !!
बय्हा यादो से किये कितने मगर !
फिर भी रही कंवारी जिंदगी !!
ना जाने क्यु करते है लोग नफ़रत शराब से !
मैंने तो पाई है जीने की राह शराब से !!
यादे तेरी आकर जब गला घोटने लगी !
की जिंदगी की हिफाजत मैंने शराब से !!
ये चराग बेनजर है ,ये सितारा बेज्बा है !
अभी तुमसे मिलाता जुलता कोई दूसरा कंहा है !!
उन्ही रास्तो ने जिन पर कभी तुम थे साथ मेरे !
मुझे रोक-रोक पूछा तेरा हमसफ़र कहा है !!
नींद को आँखों मै आना था के आंसू आगए !
मीत को सपनों मै लाना था के आंसू आगए !!
बाद मुदत के मिले लेकिन मिले इस तरह !
साथ मिलकर मुस्कराना था के आंसू आगये !!
माना है हमने कि बड़ी बेज़ार है ये जिन्दगी
ReplyDeleteपर आंसुओ सी बेकार नहीं ये जिन्दगी
मानो तो बदलती है राहे जिन्दगी
कभी कभी खुद से खुद का
तारुफ़ करवाती है जिन्दगी .......(.अंजु (अनु)
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ReplyDeleteबाद मुदत के मिले लेकिन मिले इस तरह !
साथ मिलकर मुस्कराना था के आंसू आगये !!
राजपुरोहित जी ,
बहुत सुन्दर रचना है । बधाई।
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बहुत सुन्दर रचना है ।
ReplyDeleteबाद मुदत के मिले लेकिन मिले इस तरह !
ReplyDeleteसाथ मिलकर मुस्कराना था के आंसू आगये
man ke litne sunder bhav.... yahi hota hai...
आप सभी का ध्यन्यवाद मे ब्लॉग जगत मे नया हु ! क्रपया आप मेरा मार्ग दर्शन करे !
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