देख कर हमे गली मे अपनी उसने खुदको छुपा लिया !
नाजाने दुशमनो ने हमारे क्या उसको सिखा दिया !!
और घर क्या बनवाया उसने अपना मस्जिद के सामने !
चाहत ने उसकी हमे नमाजी बनादिया !!
मजबूर ये हालत इधर भी है उधर भी !
तन्हाई की एक रात इधर भी है उधर भी !!
कहने को बहुत कुछ है मगर किससे कहे हम !
कब तक यु खामोश रहे और सहे हम !!
दिल कहता है दुनिया की हर रस्म उठा दे !
दिवार जो हम दोनों मे है आज गिरा दे !!
क्यों दिल मे सुलगते रहे लोगो को बतादे !
हा हमको मोहबत है मोहबत है !!
अब दिल में ये बात इधर भी है उधर भी है !
सिलसिला
शर्म भी तो कुछ होती है,
ReplyDeleteबहुत खूब ...जंग ऐ ऐलान हो ही जाए
ReplyDeleteआदरणीय श्री राजपुरोहित जी
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखा है उम्दा प्रस्तुती!
आभार
ReplyDeleteआपका ब्लॉग बहुत से सपने दिखाता है. फ़्रेज़नल्ज़ और बेबीज़ से चकाचौंध सेट है जो सपनों को रोशन और रंगीन बनाता है. आपका स्वागत और आभार.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और लाजवाब रचना लिखा है आपने ! प्रशंग्सनीय प्रस्तुती!
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeletekay bat hai
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखा है उम्दा प्रस्तुती|धन्यवाद|
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