Wednesday 25 May 2011

उसने खुदको छुपा लिया

देख कर हमे गली मे अपनी उसने  खुदको छुपा लिया !
                     नाजाने दुशमनो ने हमारे क्या उसको सिखा दिया !!
और घर क्या बनवाया उसने अपना मस्जिद के सामने !
                                       चाहत ने उसकी हमे नमाजी बनादिया  !! 


मजबूर ये हालत इधर भी है उधर भी !
                                तन्हाई की एक रात इधर भी है उधर भी !!
           कहने को बहुत कुछ है मगर किससे कहे हम !
                           कब तक यु खामोश रहे और सहे हम !!
   दिल कहता है दुनिया की हर रस्म उठा दे !
                          दिवार जो हम दोनों मे है आज गिरा दे !!
   क्यों दिल मे सुलगते रहे लोगो को बतादे !
                 हा हमको मोहबत है मोहबत है !!
    अब दिल में ये बात इधर भी है उधर भी है !





                                                                     सिलसिला 
                                                       

9 comments:

  1. शर्म भी तो कुछ होती है,

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  2. बहुत खूब ...जंग ऐ ऐलान हो ही जाए

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  3. आदरणीय श्री राजपुरोहित जी
    बहुत ही अच्छा लिखा है उम्दा प्रस्तुती!

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  4. आपका ब्लॉग बहुत से सपने दिखाता है. फ़्रेज़नल्ज़ और बेबीज़ से चकाचौंध सेट है जो सपनों को रोशन और रंगीन बनाता है. आपका स्वागत और आभार.

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  5. बहुत सुन्दर और लाजवाब रचना लिखा है आपने ! प्रशंग्सनीय प्रस्तुती!

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  6. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  7. बहुत ही अच्छा लिखा है उम्दा प्रस्तुती|धन्यवाद|

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